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2 Jun 2017 · 1 min read

◆◆◆◆◆जुगाड़◆◆◆◆◆

जैसे ही शीर्षक श्री ने पटल विषय जुगाड़ बताया।
हमने भी बेहतर कविता प्रेषित करने मन बनाया।
चलने लगी दिमाग पर सोच की तेजधार की आरी।
शब्दों को काट जोड़ कविता को नव जामा पहनाया।।

बीबी बाजू में पड़े यह सब नजारे देख रही थी।
कहाँ-कहाँ करते हो जुगाड़ हमसे यह पूछ रही थी
हमने कहा कैसे-कैसे किये जतन तब तुम मिली हो
वरना तुम भी कितने नाज औ नखरे कर रही थी।।

बीबी करने लगी कविता पर आज यूँ हास परिहास।
फिर कहा, हाँ सच है जनाब आज सब जुगाड़ के दास।
नई-नई तकनीकी भी अचानक फैल हो जाती है।
जुगाड़ से पुरानी वस्तुएँ भी हो जाती है खास।।

कोई रोटी कपड़ा मकान सम्मान का जुगाड़ करता
कोई नोट वोट रोजगार बिखरे अरमाँ पर मरता।
जिंदा रहूँ, रखूँ औरों को जिंदा, युगों युगों तक मैं,
लेखनी में कवि पुन्य विचारों की जान जुगाड़ करता।।

हमने तो आज ऐसा कमाल का करतब दिखा डाला।
टूटे रिश्तों को भी प्यार के जुगाड़ से टिका डाला।
सीख दी बच्चों को यूँ परिवार से जुड़े रहना सदा,
बड़ी-बड़ी मुश्किलों को परिवार ने दूर भगा डाला।

ये दुनिया है मिरेे दोस्त, ये कहाँ ऐसे चलती है।
पल-पल नई उमंग नई सोच ले मन मे मचलती है।
कोई उदास हो न जिए जिंदगी में, ख्याल रखना “जय”।
खुशी करो जुगत , चाह जीने की खुशी से निकलती है।।

संतोष बरमैया “जय”
कुरई, सिवनी, म.प्र.

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