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2 Jun 2017 · 1 min read

"क्षणिकाएँ"

क्षणिकाएँ
(१)”बात”
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कौन कहता है
तन्हाई अकेली
और खामोशी मौन होती है?
जब मिल बैठती हैं
एक साथ तो
बात ही बात होती है।

(२)”सूनापन”
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मन व्यथित हो उठा
पाकर तन्हाई में
अँधेरा जीवन
कितनी बेचैनी, दर्द
और सूनापन।
(३)”फ़ितरत”
गिरगिट से रंग बदलती
मुहब्बत को गैर के साथ
देख कर
आँखों से बहता
सैलाब कहने लगा–
“आज भीगे मेॆरे ख़त के
कुँआरे अल्फ़ाजों को
नहीं पढ़ पाओगे,
हाँ.. मुहब्बत की कश्ती
बनाकर देखना
शायद कहीं कोई
नया साहिल मिल जाए।”
(४)”हथेली की लकीरें”
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आँखों की चाहत को
हथेली की
लकीरों में कुरेदा
तो पाया…
किस्मत में मुहब्बत ही नहीं।
ख़ुदा का
शुक्रिया अता किया
जो उसने
धड़कते सीने में
दिल बनाया है।

(५)”ईर्ष्या”
आज शून्य को तक
प्यासी नज़रें
कुछ तलाश रही हैं……
किसे मालूम था—
तप्त रेत में जिन अल्फ़ाज़ों को
उकेरती मेरी तूलिका
अरमानों के रंग भर रही है
उन्हें समंदर की ईर्ष्यालु लहर
बहाकर ले जाएगी।

डॉ.रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)

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