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31 May 2017 · 1 min read

वाह रे ! दिवाकर दादा

वाह रे ! दिवाकर दादा
@@@ दिनेश एल० “जैहिंद”

मशीनी पंखे काम न करे, पंखों को कोन पूछे !
वाह रे !दिवाकर दादा, ताप दिए आप अच्छे !!

नर-नारी हुए बेचैन, व्याकुल हुए सब बच्चे !
त्राहि-त्राहि कर उठे सब, दंड दिए बिन सोचे !!

देख तपन सूरज का अब, जीव-जंतु आकुल हुए !
ग्रीष्म का ये रूप भीषण, लोग सब व्याकुल हुए !!

ताप सहन ना होय मितवा, धैर्य छूटि-छूटि जाय !
तन का पोंछ पसीना अब, मन तो टूटि-टूटि जाय !!

छांव न दें वट-पीपल भी, ये पवन नाहिं सुहाय !
झर-झर बहे ये पछुवा भी, ओंठों को झुलसाय !!

ताल-तलैया प्यासे मरे, जल-चर गए पाताल !
जलीय जीव-जंतु सब सधे, काल-मुख गए अकाल !!

जीवन-रहस्य है जल में, जल से जी खुशहाल !
अब तो भूखे सब मरेंगे, सब होंगे बदहाल !!

बनो बे-रहम ना इतने, हम तो बच्चे आपके !
मुक्त करो हमें शाप से, बच जाएं संताप से !!

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दिनेश एल० “जैहिंद”
13. 05. 2017

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