Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
28 May 2017 · 1 min read

हम के लिये

‘मैं’ ‘मैं’ है और ‘तुम’ ‘तुम’
अतः क्योंकर भिड़ना
किसी के ‘मैं’ से?
यह जानते हुये भी कि न तो
‘मैं’ ‘तुम’ हो सकता है
और न ही ‘तुम’ ‘मैं’
अतः ‘तुम’ को चाहिये कि
किसी के ‘मैं’ से भिड़ने की बजाय
मिला ले अपने गुण ‘मैं’ से
ऐसा करते ही विलीन हो जायेंगे
‘मैं’ और ‘तुम’ दोनों
और जन्म देंगे
‘हम’ को
जी हाँ, ‘हम’ को
‘हम’ ही करेगा विदा
एक-दूसरे के बीच उपजी
ग़लतफहमियों तथा
जलन की भावना को
और पहुँचायेगा
हमें अपनी मनचाही मंज़िल तक
जी हाँ,मंज़िल तक
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर

Loading...