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28 May 2017 · 1 min read

गज़ल

मिसरा- मेरी चाहत के सांचे में पिघल जा।
काफ़िया-पिघल (ल)
रद़ीफ़- जा।

परवाना खुद ही आता है ख़ाक होने को
शम्मा नहीं कहती,तू आकर जल जा।

नहीं मिलना मिलाना अब,ख़फा हमसे वो ऐसे
नज़र आते ही कहते हैं,हो नज़रों से ओझल जा।

बहुत ही दिन हुए देखो,न कोई चिट्ठी न पाती
कुहूक के हाल सुना देना,पी को जारी कोयल जा।

क्या हैओरे कारे कागा,कांव कांव बंद कर अपनी
सजन को प्रेम पत्र लिखने दे,मत डाल खलल जा।

तू गौरी चांद चकोरी चितवन तेरी चन्दन के जैसी
नज़र कहीं पी की न लगे,लगाले जाके काजल जा

कान्हा से मिलने की खातिर जा रहीं राधा भोली
दोनों की चोरी पकड़ी गई नीलम रास्ता निकाल जा।

नीलम शर्मा

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