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25 May 2017 · 2 min read

सूर्य चालीसा

जय जय जय हे दिनकर देवा।
नित निःस्वार्थ हो करते सेवा।।1।।

तुम ने ही जग उज्जवल कीन्हा।
नित नूतन किसलय प्रभु दीन्हा।।2।।

सकल जगत तुम पर आधारित।
तुम पर यह तन मन धन वारित।।3।।

सकल जगत के तुम ही आत्मा।
पूज रहे कह तुम्हे तात माँ।।4।।

वेद पुराण तुम्हें नित ध्यावे।
पूजन विधि कह कर थक जावे।।5।।

संध्या प्रभा,राज्ञी,छाया।
सबने प्रभु को है अपनाया।।6।।

गीता कहे इन्ही की गाथा।
सभी झुकाये इनको माथा।।7।।

सूर्य देव तुम सत्य के स्वामी।
सब कहते है अंतर्यामी।।8।।

तुमसे ही धरती पर जीवन।
नित विकसित प्रसून आजीवन।।9।।

देवो ने भी तुमको पूजा।
दिखे कभी जब राह न दूजा।।10।।

यजुर्वेद में कीर्ति बखानी।
सूर्योपनिषद ने महिमा मानी।।11।।

कर्ण सा पुत्र तुम्ही ने दीन्हा।
कुन्ती के विपदा हर लीन्हा।।12।।

साम्ब ने विनती तुम्हे सुनाये।
कुष्ठ रोग से मुक्ति पाये।।13।।

आयुर्वेद ने वर्णन कीन्हा।
जगत नियन्ता पालक चीन्हा।।14।।

लाखो रोग तुरत मिट जाये।
जब नूतन प्रकाश जग पाये।।15।।

ज्योतिष शास्त्र धन्य निज माने।
सूर्य देव कर कीर्ति बखाने।।16।।

श्री भागवत में शुक कहते।
निरत देव ये गति में रहते।।17।।

इक्यावन योजन की यात्रा।
इनके खातिर अल्प मात्रा।।18।।

दिन,वासर,ऋतु इनसे बनते।
ग्रह, नक्षत्र सब प्रभु से जनते।।19।।

भानु,भास्कर नाम तुम्हारा।
मार्तण्ड,शुचि,तापन प्यारा।।20।।

सात छन्द है अश्व समाना।
अति विशाल अद्भुत गुण नाना।।21।।

कृतिका,उत्तराषाढा,फाल्गुनी।
ये नक्षत्र है परम पावनी।।22।।

सूर्य देव के शनि है बालक।
अति कुशाग्र जग के संचालक।।23।।

सुवर्चला सी पुत्री पाये।
नारी जाति पर कृपा दिखाये।।24।।

आभा देख काम भी डरते।
नित चरणों की बंदन करते।।25।।

तेज रूप आदित्य कुमारा।
तम हर जग को दिए सहारा।।26।।

सकल चराचर के तुम स्वामी।
हम अनाथ तुम अन्तर्यामी।।27।।

तंत्र मंत्र से ऋषि मुनि ध्याये।
तन मन धन सब तुमसे पाये।।28।।

पूर्व लालिमा जब ले आते।
सुर नर मुनि सब शीश झुकाते।।29।।

देव रूप में प्रभु जी दिखते।
वेद पुराण व गीता लिखते।।30।।

चंद्र,शुक्र,बुध चरण तुम्हारे।
अरुण,वरुण,यम सदा सहारे।।31।।

नीति निधान परम उद्धारक।
तीन लोक में समता पालक।।32।।

हम मानव है सदा सहारे।
तम से जग को प्रभू उबारे।।33।।

चरण वंदना में नित रहते।
रश्मिरथी की महिमा कहते।।34।।

हम पर भी प्रभु दया दिखाओ।
ज्ञान मान सम्मान दिलाओ।।35।।

प्रभु को मिल पूजो नर नारी।
कलयुग में यह ही अवतारी।।36।।

कृपा करो अदिति के लाला।
हे कश्यपसुत दीन दयाला।।37।।

निरत देव मोहि राखो चरना।
शरणागत को अपने शरणा।।38।।

हे त्रिभुवन के परम प्रकाशा।
दूर करो मम घोर निराशा।।39।।

मदन कहे प्रभु निज कर जोरी।
मैं अल्पज्ञ ज्ञान नहि थोरी।।40।।

कृतिकार
सनी गुप्ता मदन
9721059895
अम्बेडकरनगर यूपी
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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