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14 May 2017 · 1 min read

मैं और मेरी माँ

?मैं और मेरी माँ?
बारिश की बूदों में माँ तू, मेघ सरस बन जाती है।
तेज धूप के आतप में तू ,आँचल ढ़क दुलराती है।
तन्हाई में बनी खिलौना ,आकर मुझे हँसाती है।
आज कहे रजनी माँ तुझसे ,याद बहुत तू आती है।
तू बनी गुरु ग्रंथ की बानी ,तू तुलसी की चौपाई।
सूरपदों की यशुमति तू माँ ,कभी ग़ज़ल कभी रुबाई।
तुझसे मेरा जीवन है माँ, मैं तेरी ही परछाई।
तेरी मूरत उर में रख माँ, पूज सदा ही मुस्काई।
याद करूँ जब बचपन अपना,सिसक-सिसक मैं रह जाती।
सुन मीठी बानी कानों में ,तू मन ही मन मुस्काती।
गोद लिए फिर मुझे चाव से,चुंबन देकर हर्षाती।
मैं तेरी बाहों में झूली, लटक-लटक कर मदमाती।
देख अश्क मेरे नयनों में,लपक दौड़ कर तू आती।
अंक लगा मुझको तू रोती,मेरे सपने सहलाती।
जब भी कोई ज़िद करती मैं,बड़े प्यार से समझाती।
थपकी देकर नींद कराती,सपनों में आ मुस्काती।
तेरे आँचल की ममता माँ, मुझको बहुत रुलाती है।
आज कहे रजनी माँ तुझसे,याद बहुत तू आती है।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका- “साहित्य धरोहर”
महमूरगंज, वाराणसी(मो. नं.-9839664017)

Language: Hindi
1 Like · 426 Views
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