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3 May 2017 · 1 min read

मन की पीड़ा

………. मन कि पीड़ा………

कितनी दूरियां बड़ चुकी है….
एक छोटे से सफर में..

अभी तो मंजिलों कि लालिमा ही दिखा है…..
पर ऐसा लगता है कि सूर्य थककर ढल चुके हैं दिन भर के सफर में… ..

लोग जुड़े अपेक्षाएं बढ़ी…. दुख की गहराई भी बढ़ती गई…

अब हारकर सोचता हूँ कि अपेक्षाओं का सीमांकन करूं…

दुख की कहर कुछ कम करूं….

खुद को ढूंढ लू… खुद को समेट लूं…

बिस्फोट करा दूं अंतर्मन की पीड़ा का.. ….

कुछ लोग जलेंगे….
कुछ लोग जलेंगे….
कुछ लोग जलेंगे…..

…….. @Thechaand………

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 1966 Views
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