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29 Apr 2017 · 1 min read

ग़ज़ल

उधर अगर लब पर मुस्कान
इधर बसा अन्दर तूफान।
मीत मोम-सा, अजब विलोम
खींचे बनकर खंजर प्रान।
वो छू ले तो हो झंकार
पा जाते हैं पत्थर जान।
देती एक अलौकिक हर्ष
अगर नज़र हो अधर समान।
आज कहे क्या मन की ‘राज’
सिर्फ प्रेम का मंतर ध्यान।
+रमेशराज

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