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7 Sep 2016 · 1 min read

कुछ न कुछ बदला जाए

चलो आज से
कुछ ना कुछ बदला जाए।

माँ हर दम कुछ ना कुछ
है करती रहती
धरती अपनी धुर पर
है चलती रहती
ऐसे ही अब कुछ
खुद को बदला जाए।

समय, सूर्य अपने पथ पर
रहते अविचल
नदिया भी रह शांत सदा
बहती कल-कल
करें अनुसरण जीवन
पथ बदला जाये।

मछली, चींटी, विषधर
कभी नहीं सोते
संत, युगंधर, योद्धा
कभी नहीं रोते
दृढ़ता ले इनसे कुछ
मन बदला जाए।

मिलन क्षितिज जैसा
बच्चों सा मन विशाल
वाणी कोयल सी
पर्वत सा उच्च भाल
हो इन जैसा कुछ
जीवन चमका जाए।

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