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27 Apr 2017 · 1 min read

हाँ तुम! बस तुम!

झरनों के संगीत में हो तुम
नदियों के हर गीत में हो तुम
सूरज की चाहत में पागल
सूरजमुखी की प्रीत में हो तुम
हाँ तुम! बस तुम!

मेरी सुबहो- शाम में हो तुम
मेरे हर एक काम में हो तुम
मंदिर, मस्जिद और गुरूद्वारे
ईश्वर, अल्ला, राम में हो तुम
हाँ तुम! बस तुम !

जीने के हर ढंग में हो तुम
खुशियों के हर रंग में हो तुम
हार में हो, हर जीत में हो
मेरी हर इक जंग में हो तुम
हाँ तुम ! बस तुम !

लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’

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