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25 Apr 2017 · 1 min read

तुम हो

क़ज़ा भी तुम हो हयात भी तुम हो
डायरी के पन्नों पर उतरे लफ्ज़ भी तुम |

सर्द मे खिड़की से आती मीठी धुप सी तुम
खलिहानो मे आयी नयी फसल भी तुम हो |

तुम ही तो हो सपनो से भरे नयनो के नमकीन पानी मे
देर रात की करवटों मे दबी सिसकियों मे भी तुम हो |

बस एक ही ख्वाईश है मेरे हमनशींं
ये प्यार ना कम हो एक दूसरे में हम गुम हो |

क़ज़ा – Death , हयात – Life

— हरदीप भारद्वाज

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