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17 Apr 2017 · 1 min read

खुद को है

जिन्दगी के हरेक  दंगल में………
…………………लड़ना खुद को है।
…………………भिड़ना खुद को है।
………………….टुटना खुद को है।
………………….जुड़ना खुद को है।

ये वक्त,बेवक्त माँगती हैं कुर्बानियाँ…..
…………………..बिखरना खुद को है।
………………….सिसकना खुद को है।
…………………..संभलना खुद को है।
……………………..उठना खुद को है।

यूँ ही नहीं, कोई इतिहास के पन्नों में …..
…………………………लुटाना खुद को है।
………………………..झोंकना खुद को है।
…………………………तपाना खुद को है।
……………………….निखरना खुद को है।

खुदा के रहमों करम हम बंदों पे सदा से …
………………………समझना खुद को है।
…………………….पहचानना खुद को है।
…………………………मानना खुद को है।
………………………..जानना खुद को है।

(रचयिता :-मनी भाई )

मुझे ना पता, यह कविता है;या कोई साज।
पर इतना समझलो; हैं मेरे दिल के आवाज।

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