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15 Apr 2017 · 1 min read

लिखते रहते है

गुल तो गुलशन में रोज खिलते रहेते है
कभी नए तो कभी पुराने मिलते रहते है
तुम भी कदर् करो क्यों आखिर मेरे इन जज्वातो की
कितने तुमको गोपाल जैसे मिलते रहेते है
वडा सरल है कवियों का तन्हा रहेना भी
कही अकेले गम सुम बैठे लिखते रहते है

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