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14 Apr 2017 · 1 min read

*पत्थरों के दिल*

वज़्न – 2122 2122 212
अर्कान – फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

शानो’शौकत से भरे जो घर मिले 
पत्थरों के दिल वहीं अक्सर मिले

फूल जिनके हाथ में दे आये हम
आज उनके पास में खंज़र मिले

ज़िंदगी से क्यूँ शिकायत हो हमें 
जब जहाँ में मौत के बिस्तर  मिलें

देश भर के जो दिलों को जोड़ दे 
काश ऐसा भी कोई रहबर मिले

हँसते हँसते वार दे जो तुझ पे जाँ
काश ऐसा तुझको भी दिलबर मिले 

जो तरसता ही रहा इक बूँद को     
क्या करे वो जब उसे सागर मिले

दर्द,आँसू,आह, बेचैनी ,फुगाँ
कब मुसाफिर को यहाँ कमतर मिले।
धर्मेन्द्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
+919034376051

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