Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Apr 2017 · 3 min read

अमर शहीद स्वामी श्रद्धानंद

क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि एक व्यक्ति जो रईसों के बिगडै़ल बेटे की तरह अहंकारी, उन्मादी, भोगविलास की समस्त रंगीनियों का आनंद लेने वाला रहा हो, उसके सम्पर्क में एक महर्षि आये और उसके चरित्र, व्यवहार और दैनिक क्रियाकलाप में आमूल परिवर्तन आ जाये। वह असुर के विपरीत सुर अर्थात् देवरूप व्यवहार करने लगे, है न ताज्जुब की बात! लेकिन इसमें ताज्जुब कैसा? बाल्मीकि का जीवन-चरित्र भी तो इसी प्रकार का रहा था।
स्वामी श्रद्धानंद भी एक ऐसे ही देशभक्त और तेजस्वी सन्यासी थे जिनका प्रारंभिक जीवन भोगविलास के प्रसाधनों के बीच बीता। स्वामी श्रद्धानंद बनने से पूर्व इनका नाम मुंशीराम थ। पिता पुलिस विभाग में ऊंचे ओहदे पर थे, सो उनके पुत्र मुंशीराम को पैसे की कोई कमी न थी। परिणाम यह हुआ कि वे अपने पिता के ऐसे बिगडै़ल पुत्र बन गये जो दिन-रात मांस-मदिरा का सेवन करता। सुन्दरता का भ्रम पैदा करने वाली भौतिक पदार्थों की चकाचौंध ने इतना घेर लिया कि सिवाय रंगीनियों के आनंद के उन्हें कुछ न सूझता।
वैभवता से परिपूर्ण जीवन के इसी मोड़ पर जब उनकी भेंट आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद से हुई तो उन्होंने लम्बे समय तक स्वामीजी से वाद-विवाद किया। दयानंदजी के अकाट्य तर्कों के सम्मुख वे अन्ततः नतमस्तक हो गये। नास्तिकता की जगह आस्तिकता ने ले ली। अवगुणों के स्थान पर सद्गुण आलोकित हो उठे। इस प्रकार बिगड़ैल मुंशीराम अपना पूर्व नाम त्यागकर स्वामी श्रद्धानंद के वेश में ही नहीं आये, उन्होंने आर्य समाज को इतना पुष्पित-पल्लवित किया कि स्वामी दयानंद के बाद उनका नाम इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।
‘गुरुकुल शिक्षा पद्यति’ का जो सपना स्वामी दयानंद संजोये थे, उसे साकार करने के लिए स्वामी श्रद्धानंद ने प्रतिज्ञा ली कि ‘जब तक गुरुकुल की स्थापनार्थ तीस हजार रुपये की व्यवस्था नहीं कर लूंगा, तब तक घर में पैर नहीं रखूंगा |’
स्वामी श्रद्धानंद का यह संकल्प कोई असाधारण कार्य नहीं था। इसके लिए उन्होंने घर-घर जाकर चंदा इकट्ठा किया। अन्ततः कांगड़ी के जंगलों में नये तीर्थ ‘गुरुकुल’ की स्थापना हुई।
स्वामीजी 18 वर्ष गुरुकुल के आचार्य पद पर रहे। उन्होंने मातृभाषा हिन्दी को शिक्षा का माध्यम बनाकर यह सिद्ध कर दिया कि हिन्दी में भी विज्ञान की उच्च तकनीकी शिक्षा दी जा सकती है। आचार्य पद पर कार्य करते हुए उन्होंने अनेक स्नातकों को विज्ञान, दर्शन, इतिहास के विषय में मौलिक ग्रन्थों का सृजन कराया। नयी पारिभाषिक शब्दावली तैयार की।
अपने लोकमंगलकारी विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने ‘श्रद्धा’, ‘विजय’ और ‘दैनिक अर्जुन’ नामक समाचार पत्रों का प्रकाशन किया, जिनमें राष्ट्रीयता की भावना और चरित्र-निर्माण पर विशेष बल दिया जाता। साथ ही जात-पांत के बन्धन तोड़ने के लिए एक विशेष वैचारिक मुहिम चलायी। दलितोद्धार और छूआछूत निवारण हेतु भी ये समाचार पत्र वैचारिक हथियार बने।
गांधी ने जब असहयोग आन्दोलन चलाया तो स्वामीजी ने उस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। जब उन्हें अमृतसर कांग्रेस अधिवेशन का स्वागताध्यक्ष बनाया गया तो उन्होंने इस मंच से हिन्दी में बोलते हुए अछूतोद्धार पर विशेष बल दिया।
अंग्रेजों का शासन स्वामीजी की आंखों में कांटे की तरह खटकता था। वे अंग्रेजी भाषा और गोरों की सत्ता को भारत में किसी भी प्रकार नहीं देखना चाहते थे। परतंत्र भारत-माता को देखकर उनका मन गहरे दुःख और विद्रोह की भावना से भरा हुआ था, अतः जब अमृतसर में अंग्रेजी हुकूमत ने विद्रोह को कुचलने के लिये लाठियां चलवायीं, गोलियां बरसायीं तो इतनी बड़ी घटना पर स्वामीजी भला चुप कैसे रहते। वे हजारों विप्लवियों को लेकर लाल किले के सामने प्रदर्शन की तैयारी करने लगे।
सैकड़ों घुड़सवारों के साथ जब कमिश्नर ने भीड़ को तितर-बितर करने का आदेश दिया तो स्वामीजी ने बिना कोई खौफ खाये जुलूस को आगे बढ़ते रहने का आदेश दिया। गोरखा सैनिकों की संगीनों के साये में जुलूस निरंतर आगे बढ़ता ही रहा। तभी एक गोरे फौजी ने उनके सामने बन्दूक तानकर जुलूस खत्म करने की बात कही। स्वामीजी ने अपनी छाती उस अंग्रेज फौजी के सामने कर दी और कहा-‘‘ भले ही मुझे गोलियों से भून दो लेकिन ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों के खिलाफ यह प्रदर्शन रुकेगा नहीं।’’
स्वामीजी की इस सिंह गर्जना के समक्ष संगीनों के कुन्दे नीचे झुक गये। किन्तु दुर्भाग्य देखिए कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे को लेकर हिन्दुस्तान में उन्माद फैला तो एक मुस्लिम धार्मिक उन्मादी ने इस सिंह को गोली मार दी। भले ही आज स्वामी श्रद्धानंद हमारे बीच न हों किन्तु उनकी ‘गुरुकुल’ की स्थापना, देशभक्ति, हिन्दी-प्रेम, अछूतोद्धार के कार्य, जात-पांत मिटाने के संकल्प हमें नव प्रेरणा देते रहेंगे।
————————————————————————-
सम्पर्क- 15/109, ईसानगर, अलीगढ़

Language: Hindi
Tag: लेख
709 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

दरिया की तह में ठिकाना चाहती है - संदीप ठाकुर
दरिया की तह में ठिकाना चाहती है - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
🙅थिंक, ज़रा हट के🙅
🙅थिंक, ज़रा हट के🙅
*प्रणय प्रभात*
अन-मने सूखे झाड़ से दिन.
अन-मने सूखे झाड़ से दिन.
sushil yadav
Watch who is there for you even when the birds have gone sil
Watch who is there for you even when the birds have gone sil
पूर्वार्थ
'ग़ज़ल'
'ग़ज़ल'
Godambari Negi
मेरी हैसियत
मेरी हैसियत
आर एस आघात
इतनी भी तकलीफ ना दो हमें ....
इतनी भी तकलीफ ना दो हमें ....
Umender kumar
*शिशुपाल नहीं बच पाता है, मारा निश्चित रह जाता है (राधेश्याम
*शिशुपाल नहीं बच पाता है, मारा निश्चित रह जाता है (राधेश्याम
Ravi Prakash
गौरैया
गौरैया
सोनू हंस
वंदे मातरम
वंदे मातरम
Deepesh Dwivedi
Post by pen, identity by post, Shyam Sundar Patel's new flight in politics
Post by pen, identity by post, Shyam Sundar Patel's new flight in politics
Shyam Sundar Patel
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
किवाङ की ओट से
किवाङ की ओट से
Chitra Bisht
नूतन बर्ष अभिनंदन
नूतन बर्ष अभिनंदन
Ravindra Sharma
उसका होना उजास बन के फैल जाता है
उसका होना उजास बन के फैल जाता है
Shweta Soni
कहानी
कहानी
कवि रमेशराज
भूलना..
भूलना..
हिमांशु Kulshrestha
SHBET
SHBET
Shbet
ज़िन्दगी सोच सोच कर केवल इंतजार में बिता देने का नाम नहीं है
ज़िन्दगी सोच सोच कर केवल इंतजार में बिता देने का नाम नहीं है
Paras Nath Jha
मैं अश्वत्थ मैं अस्वस्थ
मैं अश्वत्थ मैं अस्वस्थ
Mandar Gangal
" कला "
Dr. Kishan tandon kranti
नाटक नौटंकी
नाटक नौटंकी
surenderpal vaidya
हौसले के बिना उड़ान में क्या
हौसले के बिना उड़ान में क्या
Dr Archana Gupta
ग़र
ग़र
Santosh Shrivastava
हिंदी की उपेक्षा, मानसिक गुलामी
हिंदी की उपेक्षा, मानसिक गुलामी
अरशद रसूल बदायूंनी
शीर्षक_ जिंदगी
शीर्षक_ जिंदगी
Writer Ch Bilal
गुमनाम ईश्क।
गुमनाम ईश्क।
Sonit Parjapati
पुरखों का घर - दीपक नीलपदम्
पुरखों का घर - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
फादर्स डे ( Father's Day )
फादर्स डे ( Father's Day )
Atul "Krishn"
बसुधा ने तिरंगा फहराया ।
बसुधा ने तिरंगा फहराया ।
Kuldeep mishra (KD)
Loading...