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11 Apr 2017 · 1 min read

हुनर

” हुनर ”
———-

मुझ में भी था
हुनर !
टीलों
पहाड़ों और
वृक्षों पर चढ़ने का |
बहते झरने
बहती नदियों और
बहती हवा की
मंदित-मंदित ध्वनि का
एहसास करने का
हुनर !!
परागों की कसक
फूलों की महक और
मिट्टी की सौंधी खूशबू
को पहचानने का
हुनर !!
गुफाओं में
आवाज की प्रतिध्वनि
सुनने का और
जंगल के वीरानों में
बहारों की खोज का
हुनर !!
हाँ !!!
आज भी है !
मेरे अंतस में
प्रेम ,त्याग,समर्पण और
विश्वास का
हुनर !!
धैर्य ,मेहनत ,कर्म और
मर्म को जानने का
हुनर !!
कर्मठता
लगन, निष्ठा और
सहनशीलता का
हुनर !!
बस ! सहेज रखा है
थाति के रूप में !
हुनर को !
ताकि सिखा सकूँ !
अपनी भावी पीढ़ियों को
हुनर से…….
नव-हुनर को
विकसित करना ||

—————————
डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”

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