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23 Mar 2017 · 1 min read

*** ग़ुस्ल कर लूं ***

ग़ुस्ल कर लूं तेरी स्मित मुस्कान में

नहीं टिक पाऊंगा नज़र-पैनी धार में

निगाहें फिर भी बख़्श देती जान को

मुस्कान कर देती कत्ल लाखहज़ार में ।।

क़ातिल निगाहें हुआ करती थी कभी

मुस्कान से जी जाया करते थे कभी

आज जीना भी दुस्वार कर दिया है

उफ़ क़ातिल मुस्कान से बचे कैसे कभी

?मधुप बैरागी

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