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12 Mar 2017 · 1 min read

सजनी

डुबते सुरज की इस घड़ी में.
गोरी ! किस व्यथा के संग.
फिर आयेंगे बालम तेरे.
फिर जागेगी दिल में मृदुल उमंग.

शहरी भिड़ की आपा – धापी.
दिल नाहीं लगे सजनी तोहरे बिन.
अखियन की झुरमुट कुहलाई.
फिर जागेगी दिल में मृदुल उमंग.

प्रेम अतित की रंगभुमि में.
फिरती बिरहन में स्वप्न उमंग.
कब आओगे बित रही ये फागुन.
फिर जागेगी दिल में मृदुल उमंग.

सोहत ना ये रंग अबिरी.
पिचकारी संग बैर भई.
मंद भये मन को मयूर.
फिर जागेगी दिल में मृदुल उमंग.

लिख रहे हैं, बालम हमरे.
प्रित शहर भई सौत होली के बिच.
आयेंगे बालम हमरे किस होली.
फिर जागेगी दिल में मृदुल उमंग.

अवधेश कुमार राय “अवध”

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