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2 Mar 2017 · 1 min read

चल रहा चुनावी महासमर शब्दों के बाण से...

चल रहा चुनावी महासमर शब्दों के बाण से…
लग रहा पुरज़ोर यूपी में सिंहासन के नाम से…
बज रही तालियां कटाक्ष व्यंग्य बाण पे…
वादे हो रहे वही पुराने राजनीतिक दांव के…
विकास की बातों से हट रहे वो गधों पे ध्यान दे…
टीवी सीरियल से पेंच है बदलते दिन रात से…
रामलला को तंबु में बैठा वो लड़ रहे उनके नाम से…
जन मन को कर भृमित सब झगड़ते कुर्सी चाह में…
विकास और सम्रद्धि बस होते चुनावी हाट में…
बीतते ही दौर चुनाव खो जाते वो अपने स्वार्थ में…
सपने दिखा अपने वादों में फिर मिलते अगले चुनाव में…
जन मन की पीड़ा वो न समझते है…
राष्ट्र विकास हर पल न मन रखते है…
कहता “विकल” ये तो चुनावी दौर है…
यहाँ सब छलने आते, राष्ट्र यहाँ न सिरमौर है…

✍कुछ पंक्तियाँ मेरी कलम से : अरविन्द दाँगी “विकल”

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