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27 Feb 2017 · 1 min read

मैं क्यू लिखा करती हूँ

यादों के गुलदस्ते से निकल कर
जब खुद से रूबरू होती हूँ
अक्सर सोचा करती हूँ
मैं क्यू लिखती हूँ
हाँ मैं क्यू लिखती हूँ
अक्सर तौबा तौबा करती हूँ
फिर यादो की पोटली लिए
लिखने बैठती हूँ।
सिलसिला इश्क का
रंगे हयात में मिला
लिखा करती हूँ।
तर्जें तग़ाफ़ुल है ये
शिकवा करने है या
हुस्ने इनायत है ।
बिन सोचे
बस लिखा करती हूँ
और
आँसू भरी आँखों में
मुस्कान लिए सोचा करती हूँ
हाँ, मैं लिखा करती हूँ
पर मैं क्यू लिखा करती हूँ
#रश्मि

तर्जें तग़ाफ़ुल(जानकार अंजान बनाने की अदा)

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