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23 Feb 2017 · 1 min read

मुक्तक --आधार छंद दोहा

1
सावन सूखा ही गया, देखा पहली बार
खोया रूप बसंत का ,कैसी चली बयार
नहीं कूकती कोयलें ,नहीं भ्रमर का गान
नीरस जीवन हो गया ,मिलती नहीं बहार
2
नहीं बोलने चाहिए , देखो कड़वे बोल
आते हैं इनसे सदा ,रिश्तों में भी झोल
लेकर धागे प्रेम के रखना इनको बाँध
हीरे मोती से कहीं ,ज्यादा ये अनमोल
3
अपने अंदर झाँक लो, पाओगे भगवान
मानवता इंसान की ,है असली है पहचान
आपस में मिल कर रहो खुशिया लो कुछ बाँट
दुखे किसी का दिल नहीं ,ये भी रखना ध्यान
4
मंज़िल पाने के लिए ,पहले रखना चाह
हिम्मत रखना साथ में ,मिल जायेगी राह
इन राहों पर जब चलो, इतना रखना याद
कहीं भूल से भी नहीं ,मिले किसी की आह
5
देश खोखला कर रहे ,अंदर कुछ हैवान
उधर देश पर दे रहे ,अपनी जान जवान
कुर्बानी हम क्यों नहीं रखते उनकी याद
आपस के झगडे यहाँ , मन को करते म्लान
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद (उप्र)

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