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22 Feb 2017 · 1 min read

शायरी

जिस्म की गहरईओं में तो डूबता है जिस्म
दिल को जरा सोच कर ही डूबाना इस में
वासना, इशक का गहरा है यह समंदर
फिर न निकल पाना, सोच के डूबना इसमें !!

जैसे अस्पताल से नहीं छूटता डक्टर के कोट से
कौर्ट से नहीं बच पता वहां वकील के काले कोट से
यह दो कोट ही कुछ ऐसे हैं सब जानते हैं इनका चलन
फिर तीसरे में डूबना, तो जरा सोच के डूबना इश्क में !!

अजीत

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