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21 Feb 2017 · 1 min read

जाग्रत सूरज सदृश अच्छाँईंया, उपहार में दीं

डगर की अड़चनों ने मजबूतियाँ, उपकार में दींं |
आत्मबल की वृद्धि की पुरबाईंयाँ, मृदु प्यार में दीं|
जब लिखूँ , धक-धक करे दिल, निशारूपी कोह काँपे|
जाग्रत सूरज -सदृश अच्छाईंया, उपहार में दीं|

बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता

21-02-2017

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