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18 Feb 2017 · 1 min read

सरिता

सरिता
हिम शिखर से निकल
राह मेरी बड़ी कठिन विकल
चलूं मै इठलाती
इतराती सी
परवाह नही मुझे कभी
राह की
हो मैंदान या गहरी खाई
चलूं रेंगती कभी
गाती आई
दुर्गम वन हो या
उच्च श्रृंखला
मै तो कभी नही
उकताई
टकराती पाषाण भेदती
राहे अपनी मैंने स्वयं
बनाई बूझो तो मैं कौन
हूॅ भाई?
कोई कहे नदिया कोई तटिनी
पर सुप्रचलित इनमें
सरिता माई।

सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड

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