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13 Feb 2017 · 1 min read

II ख्वाब कि दौलत II

अगर साथ होते न,तब रात होती l
अलग से हमारी, यहां बात होती ll

न कोई परखता, कि कितनी कमाई l
वफाओं कि दौलत,अगर साथ होती ll
—————————–
वह सब का मालिक है,सब उस के सहारे हैंl
जज़्बात हैं जो अपने,सब उसने उतारे हैंlI

सब भूल चुका हूं अब,क्या अपना पराया है l
ख्वाब तुम्हारे सब ,अब ख्वाब हमारे हैं lI

संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश

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