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12 Feb 2017 · 1 min read

II.....मैं तेरा फिर भी.....II

कैसे कह दूं कि चाहता है मुझे l
एक मुद्दत से जानता है मुझे ll

बात बन जाएगी मनाने से l
आदमी ठीक मानता है मुझे ll

आते जाते छुपाए रखना सिर l
देख तेरे साथ घूरता है मुझे ll

साथ मेरा छोड़ो जहां वालों l
मैं उसे वह भी ढूंढता है मुझे ll

ले ले अब तो शरण में अपनी रब l
मैं तेरा फिर भी टालता है मुझे ll

संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश l

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