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8 Feb 2017 · 1 min read

II डगर आसान हो जाए II

सफर में बच के तू रहना कहीं ना रात हो जाए l
तेरी जो दौलते असबाब ही जंजाल हो जाए ll

ठिकाना ढूंढना अपना समय रहते यहां पर तुम l
कहीं ऐसा ना हो तनहाई कि चर्चा आम हो जाए ll

समय की है कमी सबको कभी होती नहीं पूरी l
जियो कुछ इस तरह से सब इसी में काम हो जाए ll

परिंदों को भि है शिकवा नहीं परवाज़ है पूरी l
रखो जो हौसला ऊंचा गगन भी पार हो जाए ll

समय की है सियासत और पहरा फजाओं का l
बड़ी है बंदिशे फिर भी आजादी आम हो जाए ll

कभी मुड़कर “सलिल” पीछे न देखो हाल तुम अपना l
निगाहें मंजिलों पर हो डगर आसान हो जाए ll

संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश ll

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