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8 Feb 2017 · 1 min read

# धूप छांव #

छांव तो है एक छलावा, धूप मन का है भरम l
रात या दिन कर रहे, दोनों के है अपने करम ll

धूप में टपके पसीना, जो कभी तेरे बदन l
छांव तकती राह है, तू चल रहा अपने धरम ll

धूप हो या छांव का पल काम चलना ही तेरा l
जिंदगी के काम आने, में ना हो कोई शरम ll

जो कभी रस्ते सुकोमल, या के कांटों से भरे l
करना पूरा ही सफ़र है, हो नरम या के गरम ll

कुछ भी शाश्वत है नहीं, पल पल बदलता है जहां l
जो अडिग हो फैसला तो, धूप पड़ती है नरम ll

संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l

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