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5 Feb 2017 · 1 min read

मैं घरौंदा रेत का

सागर सा तू विशाल, मैं घरौंदा रेत का l
निश्चित है परिणाम, इस जीवन के खेल का ll

उद्देश्य ढूंढता हूं, दो लहरों के दरमियां l
क्या सबब है यहां, तेरे मेरे मेल का ll

डूबती कश्ती भी देखो, आखिर क्या करे l
ढूंढता उस पर ठिकाना ,एक परिंदा दूर का ll

आती हुई लहरें सुना ,जाती भी हैं यहां l
छोड़ तट पर ढेर ,मोतियों के सीप का ll

छोटी सी उम्मीद ही “सलिल” तेरे लिए l
हौसला जो साथ ,बन जाए पत्थर मील का ll

संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश l

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