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30 Aug 2016 · 3 min read

जन्माष्टमी पर्व: प्रासंगिकता ------------------- ---------------

किसी भी वस्तु , तथ्य या बात की प्रासंगिकता इस बात पर निर्भर करती है कि तत्कालीन परिस्थितियों में वह बात , तथ्य या वस्तु कितनी उपयोगी हो सकती है।

द्वापर युग में जन्मे श्रीकृष्ण के नाम का ध्यान मात्र ही उनकी विविध कलाओं और लीलाओं का बोध सुखद अनुभूति कराता है कृष्ण केवल अवतार मात्र न थे , अपितु एक युगनिर्माता , पथप्रदर्शक , मार्गदर्शक एवं प्रबंधक गुरू भी थे ।सांस्कृतिक मूल्यों का विलुप्त होना या प्रासंगिकता खो देना युग विशेष की माँग होता है । झूठ , मक्कारी , भ्रष्टाचार , आतंकवाद , धन्धेखोरी , रेप वर्तमान अराजकता की स्थिति में कृष्ण का दर्शन अथवा कृष्ण द्वारा कही बातें आज भी कितनी उपादेय हो सकती है यह महत्त्वपूर्ण बात है ।

जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष को कम कैसे किया जाए असंख्य तनावों के बावजूद जीवन को समरसता की स्थिति में कैसे ला कर जीने योग्य बनाया जायें । ऐसे कुछ तथ्य एवं बातें है जो द्वापर युग में कृष्ण ने अपने दर्शन द्वारा बतायी आज भी उपयोगी हो सकती है।

इस लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था में भ्रष्टाचार एवं भ्रष्टाचारी शासकों से मुक्ति कैसे पायी जाए यह जानने के सन्दर्भ में प्रस्तुत रूप से कृष्ण का दर्शन उपादेय है । अन्याय के विरोध में आवाज उठाते हुए अत्याचारी शासक की नीतियों का दमन
करना चाहिए जैसे कृष्ण ने कंस की नीतियों का दमन किया । प्राय: हर युग में ऐसा होता है जब कोई शासक अनीति पर चलता है तो जनता उसकी नीतियों का पर्दाफाश कर विद्रोही आवाज उठाती है उसका दमन करती है ।

नवसृजन एवं नवकल्याण के प्रणेता कर्मयोग की शिक्षा देने के साथ कर्तव्य बोध एवं जिम्मेदारियों के निर्वहन की भी शिक्षा
देती है “निष्काम कर्म “” करने की जो प्रेरणा कृष्ण ने दी वह तनाव एवं कुण्ठा से मुक्ति दिला सकती है आज युवा वर्ग कर्म के फल की इच्छा महतीय स्थान रखती है वही उसके क्रियाकलापों का केन्द्र बिन्दु है यदि वह निष्काम भाव से कार्य करें तो युवा वर्ग अपराध बोध आदि कुत्सित वर्जनाओं से छुटकारा पा सकता है ।

‘अमीर और गरीब ‘ की खाई को पाटने में “कृष्ण-सुदामा मैत्री ” से सम्बन्धित दर्शन उपादेय हो सकता है यदि कृष्ण की भाँति धनी वर्ग भी गरीब और निम्न आर्थिक एवं अन्य प्रकार की सहायता पहुँचा सकता है यदि द्वापरयुगीन कृष्ण – सुदामा मैत्री भाव समाज आज के समाज में दिखाई देने लगे तो वर्ग -भेद का अन्तर समाप्त हो जाए । इस समर्पण भाव के द्वारा मित्रों के बीच भी सम्बन्ध सुधर सकेगें ।

किसी भी प्रबंधन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उस प्रबंधन का नेता कितना उर्जावान , वाकपटु , चातुर्यवान , विवेकशील एवं नेतृत्व व्यक्तित्व वाला है । एक प्रबन्धक में व्यवस्था के समस्त कर्मचारियों को एक सूत्र में पिरोकर चलने का गुण होना चाहिए ।

इसके साथ छोटी – मोटी हरकत को नजरअन्दाज कर अच्छे कार्य के लिए फीडबैक देना चाहिए , गलत करने पर दण्ड का प्रावधान ऐसा हो कि अन्य लोगों को सीख मिलें । कृष्ण भगवान रण क्षेत्र में अर
र्जुन को नैतिकता एवं अनैतिकता का पाठ पढाते हुए
उसे युद्ध के लिए तैयार करते है । वर्तमान में शिक्षक नैतिक तथा अनैतिक बात में अन्तर बता कर छात्र को सही मार्ग पर ला सकते है ।

कला एवं संगीत प्रेमी कृष्ण का बासुरी प्रेम वर्तमान काष्ठ कला के विकास की ओर इंगित करता है मोर पंख धारण करना उनकी ललित कला के प्रति पारखी दृष्टि तथा गाय प्रेम पशुधन की ओर संकेत करता है ।

गौधन रक्षा के द्वारा आजीविका चलायी जा सकती है साथ ही अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा भी की जा सकती है । आज भी हम गोबर से लीपे घर देखते है ।

इस प्रकार हम देखते है कि आज की परिस्थितियों में यदि कृष्ण भगवान के द्वारा बतायी हुई बातों का अनुसरण किया जाए तो काफी हद तक तनाव एवं विक्षोभ को कम किया जा सकता है तथा युवा वर्ग के बीच अकल्पित वर्जनाओं को समाप्त किया जा सकता है ।

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