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3 Feb 2017 · 1 min read

निज कर्म

कर्तव्य(कर्म)पर हमारी आज की रचना कुछ इस तरह देखिए……

निज-कर्म

करो नित काम मिले तब दाम
बने सब काम जपो प्रभु नाम
तभी सुख चैन यही सत मान
बड़े मुख बोल बने वो महान

कर्म की सीख कभी नही भीख
बड़े बो लोग बड़े संयोग
कभी संयोग कभी तो वियोग
समय को साध सदा शुभ योग

कर्म को काट कर्म से वाट
सही जो कथ्य तभी तो तथ्य
पुण्य के काम मिले सुखधाम
कर्म जो सत्य बने तब पथ्य

कर्म से फल कर्म से हल
कर्म सबल कभी न विफल
कर्म से इच्छा समझो भिक्षा
कर्म सुरक्षा कर्म ही शिक्षा

कर्म ही करतव अच्छा मनतव
मिलता सुख तव कर्म से रव तव
कर्म से उठते कर्म से गिरते
‘अनेकांत’ निज कर्म समझते

राजेन्द्र’अनेकांत’
बालाघाट दि.०३-०२-१७

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