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30 Aug 2016 · 1 min read

बढ़ रही हैं जो दिलों में दूरियाँ

बढ़ रही हैं जो दिलों में दूरियाँ
शोर अब करने लगी खामोशियाँ

देख उनको ये झपकते भी नहीं
बढ़ रही हैं नैनों की गुस्ताखियाँ

हार कर मत हार जाना तुम कभी
जीत भी लिखती हैं ये नाकामियाँ

बीत चाहें पल सुनहरे सब गए
साथ अब भी याद की परछाइयाँ

तब मुकम्मल होती है अपनी ग़ज़ल
वाह की मिलती हैं जब शाबाशियाँ

जानकर भी ये ,मिलेगी हार ही
खेलते सब ज़िन्दगी की बाजियाँ

‘अर्चना’ बेशक जमाना ये नया
पर नहीं रिश्तों में वो गहराइयाँ
डॉ अर्चना गुप्ता

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