Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
1 Feb 2017 · 1 min read

मित्रता

यूँ तो उससे कोई पुराना परिचय नहीं था, मात्र इतना कि वो दूकानदार था और मैं उसका ग्राहक। रोज उससे दूध की थैली ले जाता और दुआ सलाम हो जाता। उसका हमेशा का आग्रह की कभी घर आइयेगा चाय पर, मैं कभी पूरा नहीं कर पाया।
उसकी मुस्कुराहट उसका व्यवहार उसकी घनिष्ठ मित्रता प्रदर्शित करती थी।
उस दिन छोटे रूपये न होने के कारण पांच सौ का नोट उससे देना चाहा । देखते ही बोला सर जी दूध तो ख़त्म हो गया। अब चालीस रूपये के चक्कर में पांच सौ का नोट कौन स्वीकारता। मेरे दुकान से बाहर निकलते ही उसने दूसरे ग्राहक को दूध की थैलियां दे दी। उस ग्राहक ने उससे पूछा ये तो आपके नियमित ग्राहक है फिर इस क्यों? उसने मुस्कुराते हुए उस ग्राहक को जवाब दिया जनाब पांच सौ से चार सौ साठ रूपये भी तो वापिस करने थे।
उसकी मुस्कुराहट और घनिष्टता का रहस्य मेरे सामने बिखरा पड़ा था।

Loading...