Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
1 Feb 2017 · 1 min read

ऋतु बसन्त आ ही गया है

वसुधा का श्रृंगार किया है
नूतन उमंग नव आस लिए
ऋतु बसन्त आ ही गया है
जीवन में तो उल्लास लिए।

सूरज की तंद्रा अब भंग हुई
शीत की चुभन कुछ मंद हुई
शीत-ग्रीष्म की ही जंग हुई
प्रकृति तो मनुज के संग हुई।

तरु धारित किए नव पल्लव
जैसे हों नूतन परिधान लिए
खिले हुए हैं पुष्प भी अब तो
जैसे अधरों पर मुस्कान लिए।

पुष्पों पर मँडराए भ्रमर अब
वाणी में अपने गुंजान लिए
कोयल कूजित करती हैं अब
स्वर में अपने ही गान लिए।

देख आम्र की अब मंजरियाँ
मन में फूटे जैसे फुलझड़ियाँ
मंद बयार से सरसों की ही
लहराये पीत पुष्प पंखुडियाँ।

ऋतु के नव श्रृंगार से मन में
प्रेम का कोमल बौर फूटा है
तन-मन हुआ ही पुलकित है
मन का आलस अब छूटा है।

वन उपवन अब महक रहा है
क़िस्म क़िस्म का सुवास लिए
ऋतु बसन्त तो आ ही गया है
कुछ नूतन सा अहसास लिए।

—–अजय कुमार मिश्र

बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Loading...