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31 Jan 2017 · 1 min read

बेटियां

फूल सी खुश्बू लुटातीं बेटियां
जब कभी भी मुस्कुरातीं बेटियां।

खुशनुमा माहौल होता हर तरफ
प्यार से जब खिलखिलाती बेटियां।

हो जरूरत रोशनी की ग़र कहीं
चाँद तारे तोड़ लातीं बेटियां।

नफरतों की तोड़कर दीवार सब
घर को दुल्हन सा सजातीं बेटियां।

है सुकूं मिलता यक़ीनन आजकल
घर सलामत लौट आतीं बेटियां।

क़ायदे कानून में लिपटी हुई
ख़ुद को ख़ुद से ही छुपातीं बेटियां।

है सुबकतीं वादियां भी रात दिन
दर्द दिल का जब सुनातीं बेटियां।

भाग्य उनका रूठ जाता है यहां
जिस किसी से रुठ जातीं बेटियां।

कह रहे हैं अब फरिश्ते भी यही
लाज घर घर की बचातीं बेटियां।

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