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28 Jan 2017 · 1 min read

बेटियाँ

बेटियाँ

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जिस घर में

जन्म लेती हैं बेटियाँ

वो घर गमक उठता है

उनके सुवास से

रजनी गंधा ,मौलश्री

मधुमालती ,मोंगरा से भी

गहरी होती है

उनके प्रेम की सुवास।

रंगोली और अल्पनाओं से

सजाकर घर

बेरंग जीवन में वे

भर देती हैं

रँग जीवन के।

बुलबुल सी चहकती बेटियाँ

सूने घर को बना देती हैं

उपवन

सच ही कहती थीं दादी

जिस आँगन में

खेलती नहीं बेटियाँ

जिस आँगन से

उठती नहीं डोली

वो अँगना भी रह जाता है

अन बियाहा और अकेला

सचमुच बेटी के साथ साथ

मां बाबा ,घर द्वार ,

ताल तलैया सब

सबके सब

बंध जाते है

इक बंधन में।

कहीं टूट न जाये

नेह डोर

इस डर से घबराकर वे

नित नई गॉंठ

लगाती हैं

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