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25 Jan 2017 · 1 min read

बेरुखी (ग़ज़ल)

बेरुखी (ग़ज़ल)

नही रखों गिला मन में बेरुखी और बढ़ती है।
तुम्हारी बेरुखी ऐसी दिल पर चोट करती है।

खफा रहना अच्छा नही तेरा इस कदर।
तुम्हारी इस अदा से पूछो दिल पे क्या गुज़रती है।

हो जो कोई शिकवा तो कह के मन करो हल्का।
रहो न दूर अब हमसे यें दूरी भी
अखरती है।

जला कर राख कर ड़ाला मेरे नाज़ुक से दिल को।
ना हो जांऊ मै संजीदा यें धड़कन यूं बिगड़ती है।

सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड

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