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25 Jan 2017 · 1 min read

गणतन्त्र

मेरी कुछ वर्ष पूर्व की कलम घिसाई
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गणतन्त्र कहूँ जनतन्त्र कहूँ।
या फिर होकर स्वतन्त्र कहूँ।
कुछ भी बोलूँ पर डरता हूँ।
बेहतर है खुद को यन्त्र कहूँ। 1

मैंने वृद्धा से एक प्रश्न किया।
लगता कैसा गणतन्त्र नया।
वो बोली तुम किस दल के हो।
उसने पहले ऐसा वचन लिया।2

एक झटके में उत्तर बोल गई।
परतें प्रश्नो की वो खोल गई।
देश भक्ति बदली कितनी।
बस दो बोलो में वो तोल गई।3

तुम वन्देमातरम् गाने वाले हो।

या भारत माता के ताले हो।

मादरे वतन क्या भाता तुमको।

बोलो किसके मतवाले हो।4

रंग तुमारा क्या है पहले बतलादो।
किस भाषा में उत्तर दूँ सिखलादो।
या कौन खण्ड से आये हो बोलो
इतना मुझको तुम दिखलादो। 5

तुम टोपी वाले हो या पगड़ी वाले।
या फिरते हो सफेद अचकन डाले।
पौशाक तुमारी भगवा है क्या ?
या बहुरूपिये सा तुम रंग पाले। 6

यह सब पता चले तो बोलूँ।
वरना क्यों भेद मेरे खोलूं।
देश भक्ति अब स्वतंत्र नही।
पहले तुमको इसलिये टटोलूं। 7

*******@कॉपीराइट मधु गौतम

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