Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Dashboard
Account
25 Jan 2017 · 1 min read

दोपहर बनकर अक्सर न आया करो

दोपहर बनकर अक्सर न आया करो।

सुबह-शाम भी कभी बन जाया करो।।

चिलचिलाती धूप में तपना है ज़रूरी।

कभी शीतल चाँदनी में भी नहाया करो।।

सुबकता है दिल यादों के लम्बे सफ़र में।

कभी ढलते आँसू रोकने आ जाया करो।।

बदलती है पल-पल चंचल ज़िन्दगानी ।

हमें भी दुःख-सुख में अपने बुलाया करो।।

दरिया का पानी हो जाय न मटमैला।

धारा में झाड़न दुखों की न बहाया करो।।

– रवीन्द्र सिंह यादव

Loading...