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22 Jan 2017 · 1 min read

रहमत से भरपूर ,खुदा की नेमत हैं "ये बेटियाँ"

18th may,2012
रहमत से भरपूर हैं खुदा की नेमत हैं ” ये बेटियाँ ”
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जब भी गुड्डे गुड्डीओं के खेल में
अपनी गुड़िया को मैने डोली में बिठाया था
उसका हाथ बड़े प्यार से गुड्डे को थमाया था
नम हो आई थी मेरी आँखें भी
तब यह मन न समझ पाया था 
क्यों?
उस बेजान गुड़िया के लिए तब मेरा दिल रोया था
जिसे ना मैने पाला था,ना जिसका बीज बोया था
फिर कैसे?
अधखिली कली को खिलने से पहले ही कुचल डालते हैं
अगर भूल से खिल जाए तो घृणा से उसे पालते हैं
आख़िर क्यों?
माँ को ही सहना पड़ता हमेशा अपमान है
बेटी हो या बेटा यह तो बाप का योगदान है
अगर 
‘भ्रूण हत्या’ को रोककर  ‘बेटी’ नहीं बचाओगे 
तो ‘बेटा’ पैदा करने को ‘बहु’ कहाँ से लाओगे 
इसलिए
शादी का लड्डू जो ना खा पाए वो तरसेंगे
जब बेटी रूपी नेमत के फूल ना बरसेंगे
तब
कहाँ से लाओगे दुल्हन जो पिया मन भाए
जो हैं नखरे वाले सब कंवारे ही रह जाएँ
लो कसम
यह कलंक समाज से आज ही हटाना है
बेटी को बचाना है,बस बेटी को बचाना है

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