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21 Jan 2017 · 1 min read

तीन कुण्डलिया छंद

(१)
मेरे-तेरे में लगा,क्यों कर के साहित्य.
दिखे न अब उर का सरस,लेखन में लालित्य.
लेखन में लालित्य,कहाँ से आये भैया.
रहा व्यक्ति को पूज,आज का काव्य-खिवैया.
कह सतीश कविराय,ह्रदय में द्वेष के डेरे.
बनें मधुर सम्बन्ध,कहो क्या मेरे-तेरे.

(२)
जिनके अंतर में बसे,स्नेह-शील-सम्मान.
कर सकते वह हैं नहीं,औरों का अपमान.
औरों का अपमान,न करते औघड़दानी.
मान और अपमान,समझते हैं सम ज्ञानी.
कह सतीश कविराय,शैल क्या हम हैं तिनके.
दें उनको भी मान,नज़र में रिपु हम जिनके.

(३)
गिने-चुने ही मित्र हैं,वही दिखें नाराज़.
समझ न आये बन्धुवर,क्या है इसका राज़.
क्या है इसका राज़,मित्र ख़ुद ही बतलायें.
अगर हो संभव मीत,हमारे घर तक आयें.
कह सतीश कविराय,बात हर दोस्त सुने ही.
हैं मेरे जो खास,मित्रवर गिने-चुने ही.
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)

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