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23 Aug 2016 · 1 min read

दोषी कौन? नेता या जनता

मैं नेता हूँ एक राजनेता इसीलिए बहुत बदनाम हूँ मैं।
मुँह पर तुम जैसों से सुनता प्रशंसा सुबह शाम हूँ मैं।

पीठ पीछे तुम जैसे मुझे गाली देते हैं देते बद्दुआ हैं,
खूब कहते हैं राजनीति करने में हो रहा नाकाम हूँ मैं।

पर सच तो ये है जितना मैं दोषी हूँ उतने तुम भी हो,
लेकिन तुम ही बताओ तुम्हें कब देता इल्जाम हूँ मैं।

कभी अकेले में अपने गिरेबान में झाँक कर देखना तुम,
तुम्हारी ही गलत सोच एवँ नीतियों का दुष्परिणाम हूँ मैं।

रिश्वत लेना मुझे तुमने ही सिखाया था भूल गए क्या,
तुम ही आते हो देने तब ही लेता नौकरियों के दाम हूँ मैं।

लाख गुनाह कर लूँ पर तुम हर गुनाह को भुला देते हो,
इसीलिए हर गुनाह को अब तो करता सरेआम हूँ मैं।

अनपढ़ होते हुए बड़े बड़े अफसरों की क्लास लेता हूँ,
ना माने जो कहा मेरा करता उसकी नींद हराम हूँ मैं।

ऐ जनाब! शराब, शबाब, कबाब हर ऐब है मुझ में,
पर ऐब करता हूँ पर्दे में रहकर इसलिए लगता राम हूँ मैं।

मैं कितना ही भ्रष्टाचार कर लूँ कितने ही घोटाले कर लूँ,
फिर भी नेता चुनते हो इसीलिए करता ऐसे काम हूँ मैं।

अब तुम ही कहो असली मायनों में दोषी कौन है हम में,
तुम्हीं बनाते हो नेता, तुम्हारे ही लहू का पीता जाम हूँ मैं।

सुलक्षणा अब के बाद मुझे दोष मत देना तुम कभी भी,
मुझ पर ऊँगली उठाने वालों का करता काम तमाम हूँ मैं।

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