Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Dashboard
Account
27 Nov 2016 · 1 min read

बात दर बात हो फैसला कुछ नहीं

बात दर बात हो फैसला कुछ नहीं
एक छल है ये छल के सिवा कुछ नहीं
———————————————–
मिट गये हम ख़ुशी से वतन के लिये
और तुम कह रहे हो हुआ कुछ नहीं
———————————————–
दिन ब दिन जा रहा है उजड़ता चमन
बुलबुलों को गुलों को पता कुछ नहीं
———————————————–
लोग करते नहीं बात इंसाफ़ की
कुछ कहो तो कहेंगे कहा कुछ नहीं
———————————————–
जानते हैं सभी झूठ का साथ दे
इस जहां में किसी को मिला कुछ नहीं
———————————————–
रहबरों में सभी लोग अपने ही थे
लुट गया कारवाँ कल बचा कुछ नहीं
———————————————–
बेगुनाही करे तो करे आज क्या
जब गुनाहों की जग में सजा कुछ नहीं
———————————————–
उड़ गया हर परिंदा शजर छोड़ कर
कहके गुलशन में अब तो रहा कुछ नहीं
———————————————–

Loading...