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11 Nov 2016 · 1 min read

५) यार

यार, और रार,
नहीं अब जमाने में,
वक़्त का तक़ाज़ा हैं
यार, और रार जमानें में ।

ऑंखें दिखती नहीं
चश्मों के नीचे,
शीशों के रंग
बदलते हैं जमानें में ।

मौक़ा ढूँढना अब,
रिवाज रहा नहीं
मौक़ा रचना अब,
ब्यापार नया है जमाने में !

नेकी की दुकान
सजती हैं अब,
नगद उधार यह
बहती है जमानें में ।

इन्सान बहकता है,
नयें तरंगों में,
इन्सानियत से दूर,
उसकी पहचान है जमानें में !

नरेन्द्र। ।

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