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10 Nov 2016 · 1 min read

जीवन का एक दुर्लभ भाग बचपन

पानी में कागज की वो नाव चलाना
खेल खेलना और खिलाना
मजे करते थे हम भरपूर
छल कपट से थे हम दूर
खेल खिलौने हमारी मिट्टी
नाटक में चंदा मामा को लिखते थे चिठ्ठी
चोर सिपाही , गिल्ली डंडा , चंगा अठ्ठा
मास्साब हमसे कहते थे , और पठ्ठा
बरसात में वो भींगना , धूप में वो खेलना
सर्दियों में अलाव तापना उस पल का कोई मेल ना
सुनना वो कहानियों को और तानों को भी
क्या रोकता सकता था कोई हम जैसे मस्तानों को भी
बस वो तो समय है गुजर जाता है
बीत गया बचपन अब ना वापिस आता है
– नवीन कुमार जैन

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