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1 Nov 2016 · 1 min read

झूठ का आफ़ताब भी है बहुत!

झूठ का आफ़ताब भी है बहुत।
सच मगर लाजवाब भी है बहुत।

आ मिटा दूँ गमे रवायत सब,
मेरे दिल में शराब भी है बहुत।

आसमां छूने की तमन्ना है,
पर जमाना ख़राब भी है बहुत।

मैं न पहचान पाया की सबके,
चेहरे में नकाब भी है बहुत।

इस दफा मै रुलाऊँगा उसको,
बाकि मेरा हिसाब भी है बहुत।

दर्द की तो कुछ अब करो बातें
इश्क़ वाले किताब भी है बहुत।

कल तुम्हे छोड़कर चले गए थे,
लोग वो कामयाब भी है बहुत।

काटों से दोस्ती शुभम् कर पर,
बाग में तो गुलाब भी है बहुत।

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