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24 Oct 2016 · 1 min read

खुशबू बिखर गयी ,धरती निखर गयी:जितेंद्रकमलआनंद ( पोस्ट१०४)

खुशबू बिखर गयी ( गीत )
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गेंदा , सरसो ,टेसू फूले , खुशबू बिखर गयी ।
पुष्प झरे जब शुभ स्वागत में , धरती निखर गयी ।।

आम्र– तरुज की महक मंजरी आकुल- आतुर है ।
वासंती ऋतु में मधु गुंजित कोयल का स्वर है ।।
कामदेव का बल– सम्बल पा ,शीतल लहर गयी ।
पुष्प झरे जब शुभ स्वागत में, धरती निखर गयी ।।

निखर रहा सौरभ सरसिज का ,तन मन हर्षित है।
रंग– बिरंगी कलियॉ खिलती , अन्तस गर्वित है।
मलयाचल की सुरभि संदली ,मानो सिहर गयी।
पुष्प झरे जब शुभ स्वागत में , धरती निखर गयी।।

——- जितेन्द्र कमल आनंद

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