Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
21 Oct 2016 · 1 min read

गया जो देखकर इक बार चारागर, नहीं लौटा

किसी दिल के दरीचे से कोई जाकर नहीं लौटा
जूँ निकला अश्क राहे चश्म से बाहर, नहीं लौटा

वो क़ासिद, जो भी मेरा ख़त गया लेकर तेरी जानिब
न कोई बात है तो यार! क्यूँ अक्सर नहीं लौटा

मेरा दिल चंद पल तफ़रीह को तुझ तक गया था पर
न जाने क्यूँ वो आवारा अभी तक घर नहीं लौटा

बड़ी है तीरगी ठहरो मशाले जज़्बा ले आऊँ
यही कहकर गया लेकिन मेरा रहबर नहीं लौटा

बड़ी नाज़ुक है शायद मुझ मरीज़े इश्क़ की हालत
गया जो देखकर इक बार चारागर, नहीं लौटा

नहीं वाज़िब है यूँ दिल पे यक़ीं करना भी ग़ाफ़िल जी
करोगे क्या बताकर ही गया पर गर नहीं लौटा

-‘ग़ाफ़िल’

Loading...