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16 Oct 2016 · 1 min read

कुछ यूँ मनाओ तुम इस बार दीवाली

बाहर रौशनी तो सभी करते हैं, जिसने है भीतर जोत जगा ली ।
उसी को मिला है ज्ञान प्रकाश , उसी की सच्चे अर्थों में दीवाली ।

इधर धुआं-उधर धुआं , फैलाकर हर ओर जहर की आंधी ।
देकर पर्यावरण को जहर का प्याला , हर पल कहते वाह जी -वाह जी ।

पल भर में ठा-ठा करके , खुद लेते हैं आनंद
पैसे को हवा में जलता देख , कहते मिल गया परमानन्द ।

अरे भाई इसकी बजाय बाँट ख़ुशी , किसी गरीब की झोली में ।
मिलेगा आनंद पल भर में , जैसे मिले हैं बरसाने की होली में ।

अरे देखो रे आने वाली हैं सर्दियां , रख तू अपने इस धन को बचा के ।
गिफ्ट शिफ्ट और पटाखों का छोड़ रे चक्कर , किसी गरीब की गरीब की झोली में कम्बल ही ला दे ।

ठान ले अगर हर आदमी , पटाखों और गिफ्टों का मोह त्यागने की ।
जगा जगाया फिर से हो गया भारत, फिर नहीं जरूरत किसी को जगाने की।

पटाखों की कुछ पल की आवाज , करती है शुद्ध हवा को बर्बाद ।
सोच कर हिलती है रूह लेखक की , तभी तो किया जगाने का आगाज ।

इस बार क्यों न सोचे कुछ नया , सही अर्थों में भरपूर बेशक पटाखों से खाली ।
एक आदमी एक कम्बल बांटे , कुछ यूँ मनाओ तुम इस बार दीवाली ।

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